ब्लैक एंड वाइट से कलरफूल फिल्मो तक की बदलती कहानियो का सफर!
अब तक ब्लैक एंड वाइट की साइलेंट सीरीज में काफी फिल्मे बन चुकी थी जैसे की माया बाज़ार , अनारकली , गोपाल कृष्णा , बलिदान , भक्त विदुर , चंद्रमुखी , हातिम ताई, इत्यादि। इनके अलावा रीजनल भाषाओं में भी कई फिल्मे बनी। जिनमे से कुछ चर्चित रही कुछ नहीं भी। लेकिन 1930 के जाते जाते हिंदी सिनेमा एक बार फिर करवट लेने जा रही थी। आइये जानते है सिनेमा जगत ने इस बदलती करवट में क्या बदला ।
टॉकी एरा का जन्म
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भारत में पहली बोलती फिल्म दस्तक देने जा रहीं थी। दरसअल 1929 में हॉलीवुड का एक पॉपुलर टॉक शो जिसक नाम था ‘शो बोट’। इस शो से अर्देशिर ईरानी नाम के एक राइटर ,डायरेक्टर, प्रोडूसर इंस्पायर्ड हुआ और एक साउंड फिल्म बनाने का इरादा किया। अब फिल्म के लिए एक कहानी चाहिए थी तो इसके लिए उन्होंने मुंबई के रहने वाले एक ड्रमैटिस्ट ‘जोसफ डेविड‘ के प्ले को चुना। ये प्ले ‘आलम – आरा ‘के नाम से लिखा गया था। इसी नाम और प्ले से जन्म हुआ साउंड फिल्मों का।
पहली साउंड फ़ीचर फिल्म
साइलेंट एरा के बाद बोलती फिल्मों का दौर शुरू हुआ और ये दौर शुरू किया अर्देशिर ईरानी ने जब उन्होंने आलम – आरा नाम के प्ले से ही आलम – आरा नाम की फिल्म बनायीं। ये फिल्म पहली बार 14 मार्च 1931 में मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में प्रदर्शित की गयी। ये फिल्म ब्लैक एंड वाइट में , हिंदी और उर्दू भाषा में बोलती फिल्म थी। 124 मिनट की इस फिल्म में कई गाने है जो फिल्म को आगे बढ़ाने में मदद करते है, और ये भी बता दे की इस फिल्म का सेट रेलवे प्लेफॉर्म के पास था तो दिन का शोर – गुल और चलती ट्रेनों की आवाज़ न हो इसलिए रात के समय ही शूटिंग की जाती थी।
प्लॉट
बात करे इसकी कहानी के बारे में तो ये एक रोमांटिक ड्रामा है। जिसमे एक राजकुमार और एक बंजारन लड़की है जो एक दसूरे से प्रेम करते है लेकिन आगे बढ़ने से पहले चलते है कहानी के फ्लैशबैक में। जिसमे दिखाया है की एक राजा की दो बीवियाँ होती है जिनका नाम होता है दिलबहार और नवबहार । कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब एक फ़क़ीर भविष्यवाणी करता है की इस महल के उत्तराधिकारी को नवबहार जन्म देगी। भविष्यवाणी के मुताबिक नवबहार एक बेटे को जन्म देती है जिसका नाम होता है ‘क़मर’ ( मास्टर विठल ) इस बात से दिलबहार तिलमिला जाती है और फिर वो महल के सेनापति ‘आदिल’ ( पृथ्वीराज कपूर ) को खुद के साथ शादी करने का प्रस्ताव देती है लेकिन आदिल इंकार कर देता है। जब राजा को इस बात का पता चलता है तो दिलबाहार आदिल को ही दोषी ठहराकर राजा द्वारा उसे कारागार में डलवा देती है और उसकी प्रेग्नेंट बीवी को महल से बेदख़ल कर देती है। जो बाद में एक बेटी को जन्म देती है जिसका नाम होता है ‘आलम – आरा’ (ज़ुबेदा )। बेटी को जन्म देते वक्त सेनापति की बीवी मर जाती है। लेकिन दिलबाहार अपनी हरकतों से बाज नहीं आती और उसकी बेटी यानी आलम – आरा को देशनिकाला दे देती है। उसकी बेटी को फिर बंजारे पालते है। कुछ सालो बाद आलम – आरा वापिस महल लौट आती है जहां राजकुमार और आलम – आरा को एक दूसरे से प्रेम हो जाता है। इसी बीच दिलबाहार की सारी सच्चाई सामने आ जाती है जिसके चलते उसे सज़ा मिलती है और सेनापति आदिल को रिहाई फिर अंत में राजकुमार और आलम – आरा का विवाह हो जाता है।
फिल्म में महिलाओं का क़िरदार
हिंदी – उर्दू की ज़ुबान पर बनी ये फिल्म एक जिप्सी लड़की की कहानी है। साइलेंट एरा की कहानियों में मेन रोल कहीं न कहीं पुरुष प्रधान समाज यानि पुरुषों का ही रहता था। महिलाओं को बहुत कम ही लीड रोल में चित्रण (पोर्ट्रे ) किया जाता था। लेकिन मेरे ख्याल से आलम – आरा फिल्म में बहुत से बदलाव देखने को मिले है। सबसे पहले तो ये की इस फिल्म में इंडियन एक्ट्रेसेस को लीड रोल दिया गया इससे पहले साइलेंट फिल्मो में या तो पुरुष, महिलाओं का क़िरदार निभाते थे या एंग्लो – इंडियन महिलाओं को लिया जाता था लेकिन इसमें हिंदुस्तानी भाषा बोलनी थी तो आलम – आरा के रोल में इंडियन एक्ट्रेस ज़ुबेदा को लिया गया जो की साइलेंट फिल्मों में भी काम कर चुकी थी। दूसरा ये कि इससे पहले की फिल्मे पौराणिक कथाओं पर ही बनायीं जाती थी लेकिन इसमें माइथोलॉजी से रुख मोड़कर रोमांटिक दिया गया। इस फिल्म में बहुत से महिला किरदारो ने अहम रोल में काम किया है फिर चाहे वो वैम्प का रोल हो या एक बोल्ड अवतार में दिखने वाली लीड एक्ट्रेस का। कहीं – कहीं पर फीमेल एक्ट्रेस को असहाय के रूप में भी दर्शया गया है जैसे की आलम – आरा की माँ के साथ हुआ। जब उन्हें महल से निकाला गया तो वो प्रेग्नेंट थी लेकिन वो कोई विरोध नहीं कर पायी तो वहीं आलम – आरा को आत्मविश्वासी , साहसी और स्ट्रांग लेडी के रूप में दर्शाया है जो वापिस आकर अपने पिता यानि सेनापति आदिल को रिहा करवाती है। सटीक में काहा जाए तो ये पूरी फिल्म अलाम – आरा पर आधारित है यानि कहानी की मुख्य भूमिका के रोल में एक लड़की है और पूरी कहानी उसी के इर्द – गिर्द घूमती है जिसे बेचारी नहीं बल्कि प्रभावशाली दिखाया गया है ।
फ़िल्मी ओपिनियन
पहले समय की ऐसी बहुत सी फिल्में रही है जिनका फुटेज या शॉर्ट्स आर्काइव में मिलना मुश्किल है। वो या तो तब सहेजकर नहीं रखे गए या उनकी रील खराब हो गयी। कुछ ऐसा ही इस फिल्म का हुआ। ये फिल्म मूवीज प्लेटफार्म पर मौजूद नहीं है हा इसकी कुछ चुनिंदा तस्वीरें जरूर मिल जाएँगी। लेकिन बाद में जाकर इस फिल्म का रीमेक कलर वर्शन में बनाने की कोशिश की गयी है पर फिल्म वास्तविक कहानी से थोड़ी भटकी हुई नज़र आयी। हालांकि इसके जरिये पहली साउंड फिल्म को दर्शको तक पहुंचाने का एक प्रयास किया गया है। बहराल अब तक की फिल्मों में साहित्य या इतिहास लिया जाता था लेकिन इसमें पारसी नाटक को चुना गया जिसमे दो बीवियां और उनके झगड़े , महल , साज़िश , रोमांस को फिल्म का आधार बनाए गए। इस फिल्म में पहली बार प्लैबैक सिंगिंग का इस्तेमाल किया गया वो भी लाइव तबला और हारमोनियम पर। फिल्म के जरिये मुस्लिम कल्चर और उनके मान्यताओं को भी दिखाया गया है तो साथ ही डाइलॉग्स के माध्यम से हिंदुस्तानी भाषा को भी उजागर किया है। अंत में फिल्म को हैप्पी एंडिंग का मोड़ दिया गया।