धूप छाओं (1935) – Talkie Era Series

बॉलीवुड एरा टेल्स के सफ़र में आगे बढ़ते हुए अब हम बात करते है 1935 में आयी फिल्म , जिसका नाम है – धूप छाओं । ये फिल्म नितिन बोस द्वारा निर्देशित की गयी है और बंगाली फिल्म ‘भाग्य चक्र’ (1935 ) की रीमेक है। इस फिल्म में आपको दो अलग विचारधाराओं वाले लोग दिखेंगे और कैसे उनकी ज़िंदगी बदलती है ये भी जानने को मिलेगा। तो चलिए शुरू करते है फिल्म की कहानी…

फ़िल्म प्लॉट

धूप छाओं (1935)

फिल्म शुरू होती है बनारस में रहने वाले ‘राय हीरालाल बहादुर‘ से जो की एक करोड़ पति और पेशे से बैंक मैनेजर है। उनका एक तीन – चार साल का बेटा है जिसे पार्क में से खेलते वक्त कोई किडनैप कर लेता है और ये किडनैप करने वाला और कोई नहीं बल्कि खुद उनका छोटा भाई ‘श्यामलाल‘है जो जायदाद की लालच में ये काम किसी से करवाता है।

किडनैपिंग के बाद किडनैपर बच्चे को कोलकाता ले जाता है और एक पेड़ के पास छोड़ जाता है। बच्चे की किस्मत अच्छी होती है क्योंकि उसे ‘सूरदास‘ नाम का एक आदमी मिल जाता है जो की देख नहीं सकता पर आने – जाने वाले लोगो को चौराहे पर बैठकर गाना सुनाता है और उसमे जो भी उसे दान मिल जाता है उसी से अपना पेट भरता है। अब उस किडनैप हुए बच्चे को वो पालता है। लेकिन अब उसका गुज़ारा सिर्फ दान के पैसो से नहीं चलने वाला था क्योंकि अब उसके साथ में एक बच्चा भी है जिसका नाम दीपक है। इसलिए वो एक थिएटर कम्पनी में गायक के तौर पर नौकरी करने का फैसला करता है। हालांकि इस नौकरी का प्रस्ताव उसे पहले भी दिया जाता है क्योंकि उस कंपनी के मालिक को एक अच्छे गायक की तलाश होती है। पर तब वो मना कर देता है ये समझाकर की दुनिया में हर चीज़ की कीमत नहीं लगायी जा सकती। बहराल , अब क्योंकि सूरदास देख नहीं सकता तो दीपक को पालने में उसकी मदद एक औरत करती है जिसे हमेशा ‘कल्लू की माँ‘ कहकर पुकारा जाता है। 

समय बीतते – बीतते बीस साल  हो जाते है। इन बीस सालो में दीपक के असली पिता यानी राय बहादुर भी दीपक को बहुत तलाशते है लेकिन कुछ पता नहीं चलता। अब दीपक बड़ा हो चूका है और सूरदास की नौकरी भी उस थिएटर में अच्छी चल रही है। जिसके चलते वो झोपड़ी से निकलकर एक अच्छे – खासे घर में रहने लगते है। दीपक भी रेडियो में गाना गाता है। अभी तक उसे ये नहीं पता की वो सूरदास का सगा बेटा नहीं है। साथ ही ‘रूपकुमारी‘ नाम की एक लड़की को वो पसंद करता है। लेकिन रूप की माँ, इस रिश्ते से खुश नहीं होती और किसी ‘मिस्टर तिवारी‘ से उसका रिश्ता करने की सोचती है पर रूप इसके खिलाफ होती है।

कहानी आगे बढ़ती है और आखिरकार दीपक को मालूम हो जाता है कि सूरदास उसका असली पिता नहीं है जिससे वो बहुत दुखी होकर घर से रूप के साथ भाग जाता है।इसी दौरान एक कार एक्सीडेंट मे दीपक की यादाश्त चली जाती है। दीपक के चले जाने के गम में सूरदास गाना छोड़ देता है और बीमार सा रहने लगता है। अंत में एक बार फिर से सूरदास स्टेज पर अपने जीवन पर रचा गया नाटक में अभिनय करता है। उस समय दीपक और रूप भी वहाँ मौज़ूद होते है। सूरदास को वापस स्टेज पर देखकर दीपक की यादाश्त लौट आती है। एक बार फिर से बाप – बेटे का मिलन  हो जाता है। इसी खुशी के साथ फिल्म का पर्दा गिरता है।

महिलाओं का क़िरदार

देशी और थोड़ा विदेशी कल्चर पर बनी इस फिल्म की कहानी का आधार लव , रोमांस , एजुकेशन और जॉब रखा गया है। फिल्म में अभिनेताओं के साथ – साथ अभिनेत्रियां भी एडुकेटेड नज़र आयी । यानि महिलाओं की पढ़ाई – लिखाई को भी अहमियत दी गयी है । बात करे पहनावे की तो उसमे भी थोड़ा बदलाव किये गए जैसे की मुख्य अदाकारों को भारतीय सभ्यता के पहनावे के साथ – साथ थोड़ा विदेशी लाइफस्टाइल में भी ढाला गया है। जैसे की पुरुषों को कोट – पैंट पहने स्क्रीन पर उतारा गया है तो वहीं महिलाएं उल्टे पल्ले की साड़ी और हाथ में घड़ी पहनती हुई नज़र आयी । वहीं दूसरी ओर एक बड़ा बदलाव देखने को मिला वो ये की फिल्म में एक अभिनेत्री को खुद से गाड़ी (कार ) चलाते हुए दर्शाया गया यानि ये सन्देश दिया गया कि अब महिलाएं भी मोटर – गाड़ी चला सकती है और आने – जाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं है।

                      पहनावा

                  गाड़ी चलाती अभिनेत्री

साथ ही इस फिल्म में मुख्य अभिनेत्री रूपकुमारी को अपने प्यार के लिए लड़ते हुए दिखाया गया है। कहानी के अनुसार वो जिसको पसंद करती है विवाह भी उसी से करेगी न की अपनी माँ के पसंद किए हुए लड़के से। यहाँ एक महिला को अपनी पसंद – नापसंद ज़ाहिर करने और समाज क्या कहेगा वाली सोच से ऊपर उठकर दिखाया है। जबकि रूप की माँ का चित्रण इसके विपरीत लिखा गया। उनके लिए समाज अहमियत रखता है । इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब रूप अपने प्रेमी के साथ घर से चली जाती है तब वो कहती है – ” कहीं मुँह दिखाने के योग्य नहीं रखा। अब घर – घर में हमारी ही बाते हो रही होंगी। सब लोग कहते होंगे लड़की ने अपने कुल का नाम रौशन कर दिया ”।  इस पुरुष प्रधान समाज में एक महिला दूसरी महिला पर ही सवाल उठा रही है तो वहीं एक पुरुष यानि मिस्टर तिवारी नामक किरदार इसका जवाब बनकर कहते है कि – ” यही तो हम लोगो की भूल है कि हम हर एक काम और हर एक चीज़ को समाज की आँखों से देखते है ,आपको लड़की के चले जाने का इतना दुःख नहीं जितना इस बात का  दुःख है की लोग क्या कहते होंगे। ”  इससे मालूम पड़ता है कि समाज के लोग दो हिस्सों में बटें हुए है एक वो जो समाज की प्रवाह नहीं करते और दूसरे वो जो समाज की चार – दीवारियों से बाहर नहीं निकल पाएं है। बहराल एक बात तो तय है कि अब फिल्मो की कहानियां महिलाओं को भी ध्यान में रखकर लिखी जाने लगी थी।

फ़िल्मी अनुभव

 फिल्म की शुरुआत एक अमीर घर के बच्चे के गायब होने से होती है और फिर पूरी फिल्म उस बच्चे और उसको पालने वाले एक नेत्रहीन आदमी पर केंद्रित की गयी है। जो गाना गाकर उस बच्चे को पाल – पोषकर बढ़ा करता है। फिल्म की कहानी में दो वर्गों की विचारधाराओं को दर्शाया गया है। एक वो जो सोचते है पैसो से हर चीज़ खरीदी जा सकती है और इस दुनिया में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता। दूसरा वो जो सोचता है कि पैसों से सबकुछ नहीं खरीदा जा सकता और सबकुछ भगवान का दिया है। कहानी एक शहरी परिवेश को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी है जिसमे भारतीय सभ्यता के साथ – साथ विदेशी कल्चर का रहन – सहन, खान – पान भी कुछ हद तक देखने को मिलता है। जहां हर तरह के लोग है अमीर – गरीब , शिक्षित , अनपढ़ , नौकरी पेशे वाले और बेरोज़गार। फिल्म में जितने भी कलाकर है सबका चित्रण अच्छे से किया गया है। बस कल्लू की माँ के नाम के एक क़िरदार को स्पष्ट तरीके से नहीं बताया गया की वो पड़ोसन है, घर में काम करती है या फिर कोई रिश्तेदार है। बाकी अभिनय सबने बढ़िया किया है। फिल्म में महिलाओं को चार – दीवारी में कैद करके नहीं रखा गया है। साथ ही हीरो – हीरोइन की दोस्ती और प्रेम को किसी पर्दे में न रखकर ,खुलकर दर्शाया गया है। साथ ही महिलाओं को खुल कर जीने की , घूमने – फिरने , पढ़ने , गाड़ी चलाने और समय आने पर समाज की परवाह किए बिना फैसला लेने की आज़ादी दी गयी है। वही दूसरी ओर समाज का डर और लोग क्या कहेंगे वाली सोच भी दर्शायी गयी है जो की आज भी समाज में कहीं – न – कहीं कायम है। बात करे फिल्म के गानो की तो वो कहानी के अनुसार ही गाए गए है यानि जिस तरह की परिस्थिति फिल्म में चल रही है ठीक उसी तरह का गाना तब गाया गया है। जैसे की – ”तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर जाग जरा… ” ,”मोरी प्रेम की नैया चली जल में मोरी छोटी सी..”  इसी तरह से फिल्म मे कुल मिलाकर दस गाने है। साथ ही ये भी बता दे कि ये पहली फिल्म है जिसमे पहली बार प्लेबैक सिंगिंग का इस्तेमाल  किया गया था।

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