ब्लैक एंड वाइट फिल्मो की शुरुआत

जैसा की मैंने मेरे पिछले आर्टिकल में भारत की पहली साइलेंट फिल्म ‘ राजा हरिश्चंद्र ‘ के बारे में बताया था। वैसे तो पहली फिल्म पुंडलिक बनी थी लेकिन ये ब्रिटिश कंपनी द्वारा प्रोडूस की गयी थी इसलिए इसे भारत की पहली फिल्म की कैटगॉरी में नहीं गिना जाता। बहराल अब बात करते है इसी दौर में बनी कुछ और चर्चित साइलेंट फिल्मो के बारे में। जिनका नाम है – मोहिनी भस्मासुर (1913), सत्यवान सावित्री (1914), लंका दहन (1917), भक्त प्रहलाद (1926)

प्लॉट

मोहिनी भस्मासुर (1913)

इस फिल्म में होता ये है कि ‘भस्मासुर नाम का एक दानवराज ‘शिवजी’ को प्रसन्न करने के लिए एक घोर तप करता है जिसके पश्चात शिवजी प्रसन्न होकर दानवराज के मांगे अनुसार उसे वरदान देते है कि वो जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा वो भस्म हो जायेगा। बाद में उन्ही का दिया वरदान शिवजी को भारी पड़ जाता है जब भस्मासुर अपनी शक्ति को आजमाने के लिए शिवजी को भस्म करने के लिए उनके पीछे पड़ जाता है और शिवजी जान बचाकर भागते है। ये सब देखकर भगवान ‘विष्णु’ प्रकट होते है और मोहिनी का रूप धारण कर भस्मासुर के साथ नृत्य करते है और फिर नृत्य के अंत में छल से वो भस्मासुर के सिर पर उसी का हाथ रखवा देती है जिसके चलते वो खुद को ही भस्म कर देता है। और इस तरह से दानवराज का अंत हो जाता है और शिवजी की जान बच जाती है।

सत्यवान सावित्री (1914)

फिल्म में ‘सत्यवान और सावित्री’ की कहानी को पर्दे पर उतारा गया है । जब सत्यवान अपने माता – पिता के साथ वनवास में रहते थे तो उसी दौरान सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया बिना इसकी परवाह किए बिना की वो जंगल में रहते है। लेकिन विवाह के बाद सावित्री को पता चलता है कि उसके पति का जीवनकाल सिर्फ एक साल का है। जिससे उसे बहुत दुःख होता है। जब सत्यवान का अंतिम समय नज़दीक आया तो सावित्री ने अपने पति के प्राण वापस लाने के लिए उपवास रखा जिससे यमराज प्रसन्न हुए और सावित्री को दर्शन दिए और फिर यमराज ने वरदान मांगने को कहा जिसके चलते सावित्री ने मांगा कि उसे सौ पुत्रों की प्राप्ति हो सत्यवान से । मृत्यु के देवता यम ने बिना अच्छे से सुने तथास्तु का वरदान दे दिया। जिसका आभास उन्हें बाद में हुआ। बस फिर क्या था सत्यवान को जीवनदान मिल गया। इसके बाद दोनों पति – पत्नी अपना जीवन खुशी – खुशी बिताने लगे।

लंका दहन (1917)

दादा साहब फाल्के ने इस फिल्म की कहानी को हिन्दू महाकाव्य ‘रामायण ‘ से लिया है, जिसके लिए उन्होंने ऋषि ‘वाल्मीकि’ को श्रेय दिया है। इस फिल्म में दिखाया है कि कैसे वनवास के दौरान माता सीता को रावण ने अपनी लंका में अशोक वाटिका में कैद करके रखा था और फिर श्री राम जी के भक्त , हनुमान ने लंका में आकर सीता माता को प्रेम स्वरूप श्री राम की अंगूठी दी जिसे देखते ही माता सीता को वहाँ पर उनके होने का एहसास हुआ और ये विश्वास भी कि श्री राम उन्हें बचाने जल्द ही आएंगे । साथ ही फिल्म के दूसरे पहलू में दिखाया है कि रावण ने जब हनुमान की पूँछ में आग लगायी तो हनुमान ने उसी आग लगी पूँछ से लंका को जला दिया।

भक्त प्रहलाद (1926)

इस फिल्म की कहानी हिन्दू पौराणिक कथा ‘विष्णु पुराण’ से ली गयी थी। इस कहानी में दर्शको को ‘राजा हिरण्यकश्यप’ और उनके बेटे ‘प्रहलाद’ के बारे में दिखाया गया है। ‘प्रहलाद’ भगवान ‘विष्णु’ के बहुत बड़े भक्त थे और हर समय उन्ही का नाम जपते रहते थे। जो की उनके पिता हिरण्यकश्यप को बिलकुल न पसंद था। वो विष्णु को अपना शत्रु मानते थे।

जिसके चलते हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे प्रहलाद को हाथी के पैरों से कुचलवाने की कोशिश की जब उससे बात नहीं बनी तो खौलते तेल में डाले जाने का आदेश दिया जब इससे भी प्रहलाद बच गया तो अपनी ही पत्नी को उसे ज़हर देने का आदेश दिया। इससे भी भक्त प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ वो बस श्री हरि का नाम जपते रहा। आखिर में भगवान विष्णु ने पिलर (खंभे)में से नरसिम्हा अवतार में आकर हिरण्यकश्यप का नरसंहार कर बुराई का अंत किया ।

महिलाओं का क़िरदार

मोहिनी भस्मासुर

'मोहिनी भस्मासुर' मराठी फिल्म भारत की पहली ऐसी फिल्म थी जिसमे फीमेल एक्ट्रेसेस ने काम किया और इस फिल्म में मोहिनी का क़िरदार निभाने वाली 'कमलाबाई' नाम की एक स्टेज परफ़ॉर्मर ने एक अभिनेत्री के रूप में पहली बार डांस किया। राजा हरिश्चंद्र फिल्म में जहाँ महिला को घर की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी वहीं इस फिल्म में महिला को खूबसूरती के रूप में नृत्य करते हुए दर्शाया गया है। वहीं बात करे 1914 की 'सत्यवान सावित्री' फिल्म की तो इसमें ये देखने को मिला कि एक लड़की को अपने लिए लड़का चुनने की आज़ादी दी गयी , यानि सावित्री के प्रेम विवाह से किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई । जहां फिल्म में महिला किरादर की अपनी इच्छा और खुद के लिए, लिए गए फैसले को महत्व दिया गया है तो वहीं उसे पतिव्रता की छवि में भी उभारा गया है कि कैसे विवाह के बाद उसका पति उसके लिए सर्वोपरि है ,अपनी तपस्या से वो यमराज से भी उसके प्राण वापस छीन सकती है।

अन्ना सौलंके (माता सीता)

अब बात करते है 1917 में आयी फिल्म 'लंका दहन' की, जिसमे 'अन्ना सौलंके' ने माता सीता का क़िरदार निभाया । बात करे महिला पोर्ट्रेऐल की तो इस फिल्म में माता सीता को अबला नारी और बेचारी के रूप में दिखाया गया है । रावण की लंका में क़ैद रहने पर वो बस श्री राम का इंतजार करती है की वो आएंगे और रावण को मार उन्हें बचा ले जायेंगे। जहां उन्हें पुरुष प्रधान समाज की बेड़ियों से जकड़ा हुआ दिखाया गया है , तो वहीं उनका चित्रण (पोर्ट्रेअल ) एक स्वाभिमानी , साहसी और स्ट्रेंथ ऑफ़ करैक्टर के रूप में भी दिखेगा।

कयाधु (हिरण्यकश्यप की पत्नी )

भक्ति पर ही बनी 1926 की फिल्म ' भक्त प्रहलाद ' की कहानी भी हिन्दू पौराणिक कहानी पर आधारित है जिसमे 'प्रहलाद' , 'विष्णु' भगवान का बहुत बड़ा भक्त होते है। हर समय श्री हरी का नाम लेते रहते है तो वही उनके पिता हिरण्यकश्यप अपने घमंड में चूर होकर खुद को सबसे बड़ा और बलशाली मानता है और विष्णु भगवान को अपना दुश्मन। भक्त प्रहलाद की माता को भी पुरुष प्रधान समाज ने अपने पिंजरे में क़ैद किया हुआ है। महारानी होने के बावज़ूद भी हिरण्यकश्यप के आगे उनकी नहीं चली। वो अपने पुत्र को अपने पति के अत्याचारों से बचाने में असफल रही। उस समय लोग पौराणिक कथाएं सुनना और देखना पसंद करते थे और उन मूल्यों को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते थे फिर चाहे वो अच्छे हो या बुरे। जाने - अनजाने में वो परम्परा और रीतियों के रूप में उनके जीवन का हिस्सा बन ही जाते थे।

साथ ही ये भी बता दें कि महिलाओं ने न केवल फिल्म में एक्टिंग की बल्कि फिल्म भी बनाई। जी हाँ , 1926 में आयी फिल्म ‘बुलबुल – ए – परस्तान‘ को एक फीमेल फिल्ममेकर ने बनायीं थी। जिनका नाम था ‘फ़ातिमा बेग़म‘। ये भारत की पहली फीमेल फिल्ममेकर रहीं। लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। अभी भी हिंदी सिनेमा में महिलाओं का आना और काम करना बाकी था।

फ़िल्मी ओपिनियन

राजा हरिश्चंद्र से लेकर भक्त प्रहलाद तक की फिल्मो को देखकर पता चलता है कि तब की फिल्में हिन्दू पौराणिक कथाओं , महाकाव्यों और साहित्य पर आधारित होती थी। साथ ही ये भी जाना कि हिंदी सिनेमा और सिनेमा की कहानियों में किस तरह से बदलाव हुए। फिर एक समय के बाद महिलाओं ने भी ब्लैक एंड वाइट के दौर में कदम रखा और अपनी एक्टिंग का जादू बिखेरा।

अब बात करते है 1917 में आयी फिल्म लंका दहन की, जिसमे पहली बार एक ही आदमी ने डबल रोल में काम किया और ये रोल निभाने वाले अन्ना सौलंके थे। अब इस फिल्म से डबल रोल का सिलसिला भी शुरू हो गया था। वहीं बात करे एक ऐसी चीज़ की जो दर्शको में फिल्म को देखने की रूचि बढ़ा देती है वो है स्पैशल इफेक्ट्स ! मोहनी भस्मासुर फिल्म से हमे वो भी देखने को मिलता है। दूसरी ओर , हिंदी सिनेमा की कहानियों में एक और छोटा सा बदलाव देखने को मिलता है, वो है भक्ति का। अब कहानी के फ्रेम में भगवान की जगह भक्तों को लिया गया। जैसे की सावित्री अपने पति के प्राण वापिस लाने के लिए भगवान की तपस्या करती है। लंका दहन में हनुमान को भी भक्त के रूप में दर्शाया है जो अपने पूज्य श्री राम के कहने पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। भक्त प्रहलाद में भी यही दिखाया है कैसे एक बालक भगवान विष्णु की भक्ति में हमेशा डूबा रहता है और श्री हरि भी उसकी हमेशा रक्षा करते है।

 भक्ति की बात करे तो दर्शको में भी भगवान के लिए प्रेम भावना कूट -कूट के भरी हुई दिखाई दी। कहा जाता है की ‘लंका दहन’ फिल्म देखने के समय लोग श्री राम का सीन आने पर अपने जूते – चप्पल भी उतार दिया करते थे। तब एक्टर्स को ही भगवान माना जाने लगा था । अब देखते है आगे आने वाली फिल्मो में कहानियों का सफर यू ही रहा या कुछ बदला गया । भक्ति और भगवान पर आधारित ये फिल्मे ऑडियंस को कितनी दूर तक ले गयी …।

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